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इश्क़ - मिथलेश कौशिक

By Authors Tree Publishing in Poems » Short
Updated 23:22 IST Jan 14, 2021

Views » 1587 | 1 min read

जाम-ए-इश्क़ के नशे में चूर हो गया था ।
हुस्न उसका, मेरा सुरूर हो गया था ।
बहका था इस कदर, उसकी हवाओं में ।
आशिकों की बस्ती में मशहूर हो गया था ।
अचानक आकर उसने खुद ही कह दिया,
इश्क में डूबे शराबी लगते हो ।
मेरी और खुद की जिंदगी बर्बाद करोगे,
ऐसे ख़्वाबि लगते हो।
"कुछ करोगे या यु ही आशिकी करोगे" ।
बेअक्ल वो समझ ना पायी, इश्क़ था।
सबके हिस्से ना आता, ऐसा अब-ए-हयात् था
मिलता न सबको, बहुतो का ये एक ख्वाब था ।

---------------------- मिथलेश कौशिक (मिथ कौशिक)

Mithlesh kaushik - Mith kaushik (Founder of Authors Tree Publishing)

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