आसमान को तलाशे
मुसाफ़िर बनते फिरे
मंज़िलों के ये सितारे
काश क़दमों में गिरे
है सफ़र मुश्किल तो क्या
राही भी ये कुछ कम नहीं
अजनबी है रास्ता पर
मंज़िल तो अपनी है सही
ठोकरों का ख़ौफ़ क्या उनको
बे बाक ही जो बहते है
ख़लिश और खलबली को भी
सुकून ही वो कहते है
तो मंज़िलों के वो सितारे
क्यों ना हासिल हो सके
आसमान की तमन्ना
ये मुसाफ़िर जो रखे |