गैरों से शिकवा नही है मुझे
अपनों की बदलती जमीरी से डर है।।
ईमान ओ कुफ़्र की भुखमरी है सही,
मुझे बईमानों की अमीरी से डर है।।
न हिन्दू कहो, न मुस्लिम ..
मुझे धर्म की बीमारी से डर है।।
दिले खंजर घोंप दो, कोई गम नहीं,
पीठ पीछे की शमशीरी से डर है।।
टुकड़ो में तो जी रहा हूँ, मैं
मुझे पल पल मरने की लाचारी से डर है।।
सफर ए जिंदगी तन्हा ही सही,
मुझे इश्क़ की खुमारी से डर है।।
इंसा तो बिक रहा है सरेआम यहाँ,
फिर भी मुझे बेरोज़गारी से डर है।।
#अमन गौतम *vayraaम
ईमान ओ कुफ़्र ~ honesty and belief
शमशीरी ~ sword