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सपना भी मे, सच्चाई भी मे!

By Deepak Bhansali in Poems » Short
Updated 11:31 IST May 26, 2020

Views » 1713 | 1 min read

अंधेरा भी मे, उजाला भी मे,

मे हु तो सब है, मे नहीं तो कुछ भी नहींI

 

देखो तो नज़रियाँ हु, दिखाओ तो नज़ाकत हु,

ख़ामोशी की ज़ुबान हु, झुक गयी तो अपमान हुI

 

ख़ुशी भी मे, गम भी मे, दोनों मौको मे नम भी मे,

दूर भी मे, पास भी मे, आस भी मे, एहसास भी मेI

 

न हो पायी मुलाक़ात हु, अनकहे अनसुने जज़बात हु,

बंद हु तो सपने हु, खुल गयी तो सच्चाई हुI

 

हालातो से सिख गयी तो इंसान हु,

हालातो को बिक गयी तो हैवान हु,

मे तुम्हारी आँखे हु,

चाहो तो आज़ादी, चाहो तो सलांखे हुI

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