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क्या देखूँ

By NITISH DADHICH in Poems » Short
Updated 18:38 IST Sep 10, 2016

Views » 1470 | 1 min read

रौशनी में डुबकियां लगाती ये रात काली देखूँ,

दिल कह रहा है मैं भी आज मानके दिवाली देखूँ।

पटाखों की दुकान से दूर खड़ा था बच्चा,

अपनी ज़ेब भरी या उसकी बदहाली देखूँ।

एक तरफ रंगीनिओ में नहाती हवेलिया ,

या झोपड़ियों के दीयों में तेल खाली देखूँ।

सुरीली डकार लेने वालो को कहाँ फुर्सत है,

की गरीब के पेट में दौड़ते चूहों की कव्वाली देखूँ।

मजबूर भीष्म से अच्छा है अँधा ध्रितराष्ट्र बन जाना,

अपनों से होती तार तार कैसे पांचाली देखूँ।

 

                                                    ------नितीश दाधीच

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Comments

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taabiirdaan 12-Sep-2016 09:00

Mind blowing👏👏👏

NITISH DADHICH 12-Sep-2016 17:31

Shukria vayraam ji

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