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duriyan

By sujata in Poems » Short
Updated 12:29 IST Jun 23, 2017

Views » 574 | 1 min read

हर बार मैं सोचूं ये घाव पुराना भर गया होगा,मगर जब भी याद आया तू, तो हर वो ज़ख्म हरा हो गया...

इन रिसते ज़ख्मों को वक़्त कभी सील न सका, नासूर बानी यादें तेरी, इनको उधेड़ता ही चला गया...

छोटी सी इस ज़िन्दगी से कुछ वक़्त हमने चुरा लिया, परवाह तुझे ही कब थी , जो वक़्त को बेपरवाह करार दिया...

सही या ग़लत तो हम थे, क्यों वक़्त का तकाज़ा कह दिया...

मिलना ही अगर इत्तेफाक था तो दूरियों को क्यों नसीब कह दिया...

 

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Comments

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Rachna Maheshwari 17-Sep-2017 02:28

उस वक्त के लम्हे,हमने संजो कर रख लिए।
तुझे परवाह न थी, हम तो बेपरवाह न थे।
क्या सही, क्या गलत, इस सब से वाकिफ़ न थे।
लेकिन वक्त का तक़ाज़ा था, दूरियाॅं बढ़ी
दूर से अलविदा कह, नम आॅंखों से आगे बढ़ गए।
शायद यही वक्त का तकाज़ा था...............

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