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डर है!

By taabiirdaan in Poems » Long
Updated 07:28 IST May 12, 2017

Views » 1563 | 2 min read

 

गैरों से शिकवा नही है मुझे

अपनों की बदलती जमीरी से डर है।।

 

ईमान ओ कुफ़्र की भुखमरी है सही,

मुझे बईमानों की अमीरी से डर है।।

 

न हिन्दू कहो, न मुस्लिम ..

मुझे धर्म की बीमारी से डर है।।

 

दिले खंजर घोंप दो, कोई गम नहीं,

पीठ पीछे की शमशीरी से डर है।।

 

टुकड़ो में तो जी रहा हूँ, मैं

मुझे पल पल मरने की लाचारी से डर है।।

 

सफर ए जिंदगी तन्हा ही सही,

मुझे इश्क़ की खुमारी से डर है।।

 

इंसा तो बिक रहा है सरेआम यहाँ, 

फिर भी मुझे बेरोज़गारी से डर है।।

                                     #अमन गौतम *vayraaम

                                    

 

ईमान ओ कुफ़्र ~ honesty and belief

शमशीरी ~ sword

 

 

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