पिता को बूढ़े होते देख रहा,
अब अख़बार को आँखों से सटाकर पढ़ते है,
चाय बिना चीनी के पीते है,
अब आँखे लाल नही होती
मेरी गलतियों पर।
माँ के चेहरे पर थकावट दिखता है,
सीढियाँ चढ़ने के बाद
बैठ जाती है ,साँस भरने को
अब दवाईयाँ उनके खिड़कियों पर रखा मिलता है।
बहन बिदा होते ही
एक कमरा खाली हो गया घर का
अब सुबह और शाम
नही आती बर्तनों की आवाज
चाय की जली बर्तन को,
चम्मच से नही खखोरता कोई
अब उसके कमरे की खाली आलमारी में
घर के पुराने अख़बार रखे जाते है।
उसकी कुछ यादें , दे दी गयी उसी को
जो कुछ बची उसको ,
माँ ने बन्द कर दिया सन्दूक में।
घर अब सिमट कर
कमरा हो रहा...