अंधेरा भी मे, उजाला भी मे,
मे हु तो सब है, मे नहीं तो कुछ भी नहींI
देखो तो नज़रियाँ हु, दिखाओ तो नज़ाकत हु,
ख़ामोशी की ज़ुबान हु, झुक गयी तो अपमान हुI
ख़ुशी भी मे, गम भी मे, दोनों मौको मे नम भी मे,
दूर भी मे, पास भी मे, आस भी मे, एहसास भी मेI
न हो पायी मुलाक़ात हु, अनकहे अनसुने जज़बात हु,
बंद हु तो सपने हु, खुल गयी तो सच्चाई हुI
हालातो से सिख गयी तो इंसान हु,
हालातो को बिक गयी तो हैवान हु,
मे तुम्हारी आँखे हु,
चाहो तो आज़ादी, चाहो तो सलांखे हुI