शहर और गाँव
-------------------------
कितना अच्छा है शहर
संगठित, साफ- सुथरा
खुबसूरत बड़े मकान
थूकने के लिये,
सड़क किनारे पीकदान
लम्बी- लम्बी गाड़ियाँ
जिसके अंदर आदमी, जानवर
दोनों है सवारियाँ ।
मरीजो के लिये बड़े बड़े अस्पताल
मनोरंजन के लिये हर गली सिनेमाहॉल
टाई -बेल्ट, शरीर पर मोटे गर्म कपडे
चुपचाप का सफर,बगल से ना कोई लफड़े
तो क्या है कमी,
लोगो को शहर फिर भी नही भाता है,
क्यूँ लोगो को अक्सर पुराना गाँव याद आता है।
कुछ लोग कहते है, जो मकानों में रहते है।
दीवारे अपनी होती है,
छत किसी और का हो जाता है
फिर बढ़ते इन मकानों के बीच
खुबसूरत चाँद कही खो जाता है।
इसलिय जीते है शहर में
पर गाँव में जीवन नजर आता है।
गौरव✍