ऐसे ही हया रखकर मुस्कुराने को अदब बताया जाता है,
अब समझा कुर्बानी का बकरा यूँ कैसे फंसाया जाता है!
आँखों में अज़ब सी कशिश होती है ये वीरानों को बहार करती है,
हर साल लगता है मेला मवेशियों का और संख्या हर साल बढ़ती है!
वो बोलतीं हैं तो लगता है नश्तर चलातीं हैं और वार करतीं हैं,
हरेक का बयां यही है कि साहब शादी जीना दुश्वार करती हैं!
बस इसीके साथ इस कहानी को यहीं समाप्त यहीं ख़त्म करता हूँ,
वो करतीं हैं लाखों की शॉपिंगें और मैं वो सारी रक़म भरता हूँ!