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माँगने का हक़!!!

By Dr Himanshu Sharma in Rib Tickling
Updated 20:07 IST May 08, 2017

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"रहिमन वे नर मर गए जे कछु माँगन जाहि!
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहीं!!"

रहिमदास जी ने जब ये बात कही थी तब शायद उनका कोई पडोसी नहीं रहा होगा क्यूंकि भारत में माँगने का सबसे पहला हक़ पडोसी का ही होता है जैसे हमारे देश का पडोसी कबसे "धरती का स्वर्ग" की मांग किये बैठा है! ख़ैर! छोड़िये उस नामुराद को! जैसे की मैं कह रहा था कि भारत में सभी को मांगने का हक़ है, दोस्त हक़ से पेन और पैसे मांगते हैं, बीवी गहने मांगती है, बच्चे मोबाइल मांगते हैं, बॉस जान मांगता है, इत्यादि-इत्यादि! देखिये इस हक़ का उल्लेख आपको संविधान के कानूनी हक़ों में कहीं नहीं मिलेगा, ये हक़ हमें दिया है हमारे चातुर्य-वर्णी समाज ने जिसमें समाज का मूल कहे जानेवाले ब्राह्मण का कर्म ही याचना बताया गया है! ब्राह्मण को ज्ञानी बताया गया है यानि कि जो याचना करता है वो ज्ञानी हो जाता है! अगर याचना से इतना ज्ञान मिलता है तो सोचिये छीनने से कितना ज्ञान मिलता होगा? शायद इसलिए विश्व-पटल पर कई देश छीना हुआ ज्ञान हासिल करके खुद को "अनहलक" उद्घोषित करना चाहते हैं! भारत में सबसे ज़्यादा "छीनने" से मिला ज्ञान हमारे नौकरी में मौजूद हमारे तथाकथित "सुपीरियर्स" को है क्यूंकि अपने बॉस होने के कार्यकाल में कितने ही सही और योग्य लोगों के उन्होनें हक़ "छीनकर"अपने चाटुकारों को दे दिए होते हैं!
भारत में सबसे ज़्यादा हक़ जो लोग मांगते हैं वो होते हैं हमारे राजनीतिज्ञ! हर ५ साल के बाद आकर ये हक़ से वोट मांगते हैं और आपको पता है जो भी मांगता है वो ज्ञानी हो जाता है! तो ये राजनीतिज्ञ इतने ज्ञानी हो जाते हैं कि इनके दिमाग को तुरंत भान हो जाता है कि "आत्मा न हंते न हन्यमान्यते!" यानी कि न आत्मा मरती है न मारती है! इसलिए भले ही जनता भूख, प्यास, बीमारी, इत्यादि से मर जाती है तो ये कहते हैं कि सिर्फ शरीर मरा है और आत्मा तो मरती भी नहीं है और वेदों ने आत्मा को मूल तत्त्व माना है न कि इस शरीर को और तो और मृत व्यक्ति के भूत बनकर बदला लेने का ऑप्शन भी भगवान् ने ये कहकर एफ. आर. लगवा दी कि आत्मा मार भी नहीं सकती है! शायद इसलिए आपदा में मारे लोगों के लिए सरकार द्वारा दिए गए धन को नेता-बाबू इसलिए इतने सुलभता से पचा जाते हैं क्यूंकि कोई इस कुकर्म का बदला लेने नहीं आता है!
समाज में ऐसे लोग भी हैं जो हक़ से लड़के के पालन-पोषण का खर्च लड़की के माता-पिता से मांगते हैं! ख़ैर ऐसे लोगों को भी ज्ञान हासिल होता है मगर ऐसे भौतिकवादी लोगों को इतना सा ज्ञान पसंद नहीं आता है, इसलिए ये उन लड़कियों के माँ-बाप से और धन छीनते हैं और अंत में उस वधु के प्राण छीनकर ज्ञान के पुरोधा बन जाते हैं! इनसे भी एक क़दम आगे हैं वो लोग जो उस उपरवाले से सिर्फ लड़का मांगते हैं परन्तु नवजात कन्या के पैदा होते ही उसके प्राण छीन लेते हैं! इसलिए भगवान् भी ऐसे लोगों के आगे नतमस्तक हो जाते हैं और कहते हैं कि मैं सँसार-भर को ज्ञान देता हूँ परन्तु तुम मुझे इस बात का ज्ञान दो कि जब बनाये गए थे तब इंसान थे परन्तु दानव में कायांतरण कैसे किये इस "ट्रिक"से मुझे भी अवगत करवाओ!
देखिये सत्य ही कहा गया है कि माँगना मरण समान है परन्तु रहीमदास जी तो ऐसे लोगों को मृत मानकर ही बैठे हैं तो मृत व्यक्ति दुबारा कैसे मर सकता है? ऐसे लोगों को पुनर्जीवित होने के लिए अपने इस अतिवादी मांगने की आदत का पिंड-दान करना पड़ेगा ताकि ये आदतें पितरों में स्थापित हो जाएँ! और हमारे यहाँ प्रावधान है कि पितरों को साल में एक ही बार संतृप्त करवाया जाता है!

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