सामने पाया उसे हर सुबह जब आँख खुली,
आँखों ने समझा आँखों को जब आँख खुली।
कुछ मेहताबो की सोहबत में खूब नाचे जुगनू,
सब छिप गए जब सूरज की आँख खुली।
सजदा में झुकाया सर तो उसे हीमाँगा,
क़ुबूल हो गयी नमाज़ जब आँख खुली।
मेरे होटों को उसके होटों ने समां लिया खुदमे,
सब सपना है जाना मैंने जब आँख खुली।
बंद आँखों में ‘वकील’ जाने क्या दिखता रहा ,
कुछ ख्वाब सजाये आँखों में जब आँख खुली।
नीतीश दाधीच "वकील"