चमगादड़, ऐसा जीव है जिससे सभी भयभीत रहते हैं, क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि चमगादड़ का काम इंसानों का ख़ून चूसना है! भला हो इंसान और इंसानियत का जो कि चमगादड़ के ख़ून पीने की ग़लतफ़हमी को पालकर बैठे हैं मगर जो वास्तविकता में ख़ून चूसते हैं उन्हें सत्तासीन कर देते हैं! वैसे तो चमगादड़ की सत्तर फ़ीसदी नस्ल सिर्फ फलों और कीट-पतंगों पर जीवित रहती है और बाकी तीस प्रतिशत की वजह से ही समस्त चमगादड़ें बदनाम हैं, ये मसला ठीक वैसा ही है जैसे ७० प्रतिशत अकर्मण्य सरकारी कर्मचारियों की वजह से बचे हुए तीस प्रतिशत पर भी संदेह किया जाता है! खैर हमारे यहाँ की संस्कृति ही ऐसी है कि बदनाम को बुद्धूबक्से पर ज़्यादा जगह मिलती है बजाये किसी ख़्यात को! हाँ! तो हम बात कर रहे थे चमगादड़ की, आप भी सोच रहे होंगे कि इसको लिखनेवाले का या तो दिमाग़ अक़्ल के मामले में रसातल में पहुँच चुका है या ये व्यक्ति डिस्कवरी चैनल का कोई पत्रकार है, अगर आपके दिमाग में इनमें से कोई भी ख्याल कुलबुला रहा है तो वस्तुतः आप किसी तरह के मुगालते को पालकर बैठे हुए हैं! बात ये है कि चमगादड़ और इंसान की कुछ चीज़ें सामान हैं और मेरे दिल में ये आया कि आपके सामने इनकी व्याख्या या विवेचना करूं:
उल्टे लटकने का गुण: अरे! इस गुण के शाब्दिक अर्थ पर मत जाईये दरअसल जब भी चमगादड़ उल्टा लटकता है तो किसी चीज़ को सहारे के लिए मजबूती से पकड़ लेता है ताकि वो यानि चमगादड़ कहीं गिर न जाए, दरअसल हमारे सरकारी प्रशासन में ऐसे गुण वाले व्यक्ति बहुतायत में पाए जाते हैं जिन्होंने चमगादड़ से हवा में शीर्षासन करने का गुण सीखा है और लटकने के लिए ये जिस चीज़ का इस्तेमाल करते हैं सरकारी भाषा में उसे फ़ाइल कहते हैं! एक बार फ़ाइल उनके मज़बूत पंजों के बीच में आ जाती है तो बस उसे छुड़ा पाना नामुमकिन हो जाता है परंतु जैसे ही चमगादड़ को अपना शिकार मिल जाता है, तो वो इस पकड़ को छोड़ अपनी भूख मिटाने के लिए निकल पड़ता है! ठीक वैसे ही हालत इन लोगों की कागज़ के चंद टुकड़ों को देखकर हो जाती है और ये भी अपनी भूख मिटने के लिए पंजों में जकड़ी फ़ाइल को छोड़ देते हैं! ख़ैर अब हम बात करते हैं चमगादड़ के अगले गुण की जो इंसान में दिखता है!
ध्वनि-केंद्रित वस्तु-पहचान तकनीक: देखिये ये कोई विज्ञान का क्लिष्ट सूत्र या अभिक्रिया नहीं है जो आप इतने गौर से इसे समझने का प्रयास कर रहे हैं दरअसल चमगादड़ की नज़र रात्रि में दिग्दर्शन हेतु नहीं बनी है इसलिए शिकार को पकड़ने के लिए वो ध्वनितरंगों से उत्पन्न प्रतिध्वनि या इको को इस्तेमाल करते हैं! हमारे सरकारी-तंत्र में भी कुछ लोग ऐसे हैं जो मजबूर आदमी को पहचानने के लिए उसे इतना चक्कर लगवाते हैं कि वो चीखने लगता है क्योंकि सरकारी कर्मचारियों के कान थोड़े पीछे लगे होते हैं (इसलिए ही तो उन्हें जब कोई सामने से कुछ कहता है तो सुनायी नहीं देता है), इसलिए जैसे ही आवाज़ प्रतिध्वनित होती है तो उसमें मौज़ूद मर्म से ही वो अंदाज़ा लगते हैं कि शिकार कितना "मोटा" है और उसी हिसाब से उससे "गाँधी जी" को निकलवाते हैं!
हवा में उड़ने का गुण: सरकारी तंत्र में जिस गुण का उपयोग सबसे ज़्यादा किया जाता है वो है हवा में उड़ने का गुण! किसी भी सरकारी कर्मचारी की अगर पहचान किसी उच्चाधिकारी या राजनीतिज्ञ से होती है तो वो इतना फूल जाते हैं की स्वतः ही हवा में उत्प्लावित या तैरने लगता है, इसलिए कहा जाता है कि फलां आदमी हवा में उड़ने लग गया है! और तो और सरकारी फ़ाइलें भी इस गुण का भरपूर इस्तेमाल करतीं हैं, जैसे ही पता चलता है कि फलां अफसर को किसी फ़ाइल में मौज़ूद भ्रष्टाचार का पता चल गया है, तो फाइलें स्वतः ही रातों-रात हवा में उड़कर कहीं और चलीं जातीं हैं और उस भ्रष्ट मातहत को बचा लेतीं हैं!
ख़ून पीने का गुण: ये गुण हर सरकारी कर्मचारी में स्वतः ही उत्पन्न हो जाता है! सरकारी कर्मचारी जो भी होता है वो पैदाइशी "ऎनेमिक"होता है, उसी रक्त की पूर्ती हेतु वो खून चूसना शुरू तो करता है परंतु समय व्यतीत होने के साथ ही वो उसकी ख़ुराक बन जाती है! कभी-कभी तो ये लगता है कि सरकारी अस्पताल में ख़ून की आपूर्ति भी इनके मुंह में ज़बरदस्ती नोट ठूंसकर करवाई जाती होगी!
सरकारी-तंत्र व्यक्तियों से चलता है और व्यक्तियों के लिए ही होता है परंतु जब तक तंत्र में ऐसे चमगादड़ जैसे लोग रहेंगे तो न केवल काम उल्टे लटककर होंगे वरन चीज़ें हवा में उड़कर गायब भी होंगी और तो और लोगों का खून भी चूसा जाता रहेगा और पीछे रह जाएंगी वो प्रतिध्वनियाँ जिनको इन्साफ का कोई पैरोकार नहीं मिलेगा और वो गुंजायमान रहेंगी सर्वदा के लिए!