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मेरे यार रूमी...

By manvendra singh rajpura in Poems » Short
Updated 10:25 IST Aug 28, 2016

Views » 1417 | 1 min read

क्यूँ है जो ये है ....दर्द नाफ़ानी सा ...

क्यूँ ये बहते से आँसू मेरे रुकते नहीं हैं....

क्यूँ दुशवार है मुझे ही ...मेरा इल्म साँसों का ...

क्यूँ मेरा इश्क़ तुझसे ... मुझसे ही छुपता नहीं है ...।

 


कि जो इल्म-ए-इश्क़ है कभी उर्दू सा कभी ख़ुदाई सा ...
क्यूँ आज दर्द के दरिया से कम सा नहीं है ...

नाज़ाने .... क्यूँ


मेरे यार रूमी ...


तू ही बता... क्यूँ मेरा इश्क़ ... तेरे इश्क़ सा नहीं है .....

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Comments

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Kalamwali 28-Aug-2016 10:55

Fantastic!!

manvendra singh rajpura 28-Aug-2016 12:47

धन्यवाद ..। ✌🏼️

taabiirdaan 31-Aug-2016 16:13

बहुत खूब जनाब!!!! थोड़ी उर्दू हमें भी सिखाना।

manvendra singh rajpura 31-Aug-2016 19:16

जी जनाब ... क्यूँ नहीं...
बड़ा आसान है उर्दू सिखना ...
बस इश्क़ कर लीजिए 😉

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