क्यूँ है जो ये है ....दर्द नाफ़ानी सा ...
क्यूँ ये बहते से आँसू मेरे रुकते नहीं हैं....
क्यूँ दुशवार है मुझे ही ...मेरा इल्म साँसों का ...
क्यूँ मेरा इश्क़ तुझसे ... मुझसे ही छुपता नहीं है ...।
कि जो इल्म-ए-इश्क़ है कभी उर्दू सा कभी ख़ुदाई सा ...
क्यूँ आज दर्द के दरिया से कम सा नहीं है ...
नाज़ाने .... क्यूँ
मेरे यार रूमी ...
तू ही बता... क्यूँ मेरा इश्क़ ... तेरे इश्क़ सा नहीं है .....