×

तलाश है

By Vijay Meghwal in Poems
Updated 02:20 IST Apr 16, 2023

Views » 628 | 1 min read

अब तो रोते भी आंसु छुपाकर,

बनावटी हंसी हंस कर,

शिकायते बहुत है आपसे 

टाल देते है ये सोचकर,

कही आप नाराज हो जाओ हमसे

 

उजाले में हंसते हैं

अंधेरों में रोते है 

गमों की माला में 

हंसी के मोती पिरोते है 

 

कहने को तो यहां मेले है 

पर फिर भी हम यहां अकेले है 

ओरो के लिए महफिल की शान है 

पर हम अपनी ही महफिल में गुमनाम है 

 

मर तो कबके गए है

अब तो जिंदा लाश है 

इस भीड़ में किसी और की नहीं

बस हमे खुद की तलाश है।

0 likes Share this story: 0 comments

Comments

Login or Signup to post comments.

Sign up for our Newsletter

Follow Us