सत्ता का दुरूपयोग ::
महाराष्ट्र सरकार चाहे लाख सफाई दे दे, पर यह सत्ता के दुरूपयोग की पराकाष्ठा है कि एक अभिनेत्री की साफगोई से चिढ़कर उसके आशियाने को मटियामेट कर दिया गया है । वह भी उस मुंबई में जिसमें बीएमसी के अनुसार, हजारों लोग अतिक्रमक हैं और सैकड़ों भवन जर्जर वाले धराशाही होने के कगार पर हैं, जिन्हें केवल नोटिस देकर अपने स्लावनों की इतिश्री समझ ली गई हैं।
उन्हें अतिक्रमणकारियों पर बुलडोजर चलवाने का इतना ही शौक है, तो उन्हें उन सब पर बेरहमी से चलवाना चाहिए, जो बरसों से सरकारी जमीन पर कुंडली मारे बैठे हुए हैं और सत्तासीनों को मुंह चिढ़ा रहे हैं। महाराष्ट्र के नेता प्रतिपक्ष का भी यही कहना है। बाकी को केवल नोटिस, कंगना की इमारत पर कार्रवाई, यह तो मनमानी है। सवाल यह भी कि मुंबई बमब्लास्ट का गुनेहगार डॉन इब्राहिम का घर तोड़ने में उन्हें नानी क्यों याद आती है?
यह कत्था खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की नाई है, जो सरकार के सेहत के लिए नुकसानदेह साबित होने वाला है। इसकी आलोचना महाराष्ट्र में सरकार चलानेवाले घटक दल राकापंत के मुखिया शरद पवार ने भी की है। ऐसा ही बयान कांगे्रस के संजय निरुपम की ओर से भी आया है। एनडीए तो मौके की तलाश में ही था, उसे बैठे-थले सरकार को घेरने का मौका मिल गया है।
सुशांत सिंह राजपूत का मामला हत्या है या आत्महत्या; यह तो सीबीआई की मुकम्मल जांच से सामने होगा, लेकिन सही तरीके से जांच न करने के लिए मुंबई पुलिस की आलोचना करना, किसी दृष्टि से अलोकतांत्रिक नहीं है। कंगना रनोत वही करी है, जिसके खामियाजे के रूप में उसे महाराष्ट्र सरकार का कोपभाजन बनना पड़ा है।
यह नहीं है, सत्ता के किए में चूर सत्ताधीश उसके 'मुँह तोड़ने', मुंबई में 'घुसने नहीं देने' की घमकियाँ पड़ रहे हैं। शिवसेना के मुखपत्र सामना में 'उखाड़ दिया' छापा गया है।
लेकिन, हैरत की बात यह है कि आमतौर पर महिला अधिकारों की बात करनेवाले फेमिनिस्ट खामोश हैं? क्या उन्हें कंगना रनोत के मामले में 'महिला की अस्मिता' के खतरे में पड़ती नहीं दिख रही है? उन्हें 'रिया चक्रवर्ती' पर तो तरस आ रहा है, लेकिन 'कंगना रनौत' कांटों की तरह इसलिए चुभ रही है; क्योंकि वह उनके एजेंडे में फिट नहीं बैठ रहा है।
इस स्वाभाविक रूप से कंगना रनौत बिफरकर बयान दी है, ' आओ उद्धृतव ठाकरे और करण जौहर गैंग आपने मेरे कार्यस्थल को तोड़ दिया। अब घर तोड़ो, फिर से चेहरा। में चाहता हूँ कि दुनिया देखे कि तुम भी यही हो और क्या कर सकते हो? चाहे मैं जीऊं या मर जाऊं! मैं आपको बेनकाब कर दूंगी। मेरा कार्यालय भवन नहीं, राममंदिर है। आज बबर आया है। राममंदिर फिर टूटेगा, लेकिन याद रखिए बाबर, यह मंदिर फिर बनेगा। रानी लक्ष्मीबाई के साहस, शौर्य और बलिदान को फिल्म के जरिए मैंने जिया है। मैं रानी लक्ष्मीबाई के पदचिन्हों पर चलूंगी। न डरूगी, न झूकूगी। जय ह। जय महाराष्ट्र। '
कंगना रनोट को फिल्म इंडस्ट्री से अनुपम खेर, रेणुका शहाणे, अंकिता लोखंडे, विवेक अग्निहोत्री, सोनल चैहान, दिया मिर्जा जैसे सितारों का साथ मिला है। अनुपम खेर ने ट्विट कर कहा है, ' इसे बुलडोजर नहीं, बुलीडोजर कहते हैं। किसी का होमौंदा बेरहमी से तोड़ना गलत है। इसके प्रहार कंगना के घर पर नहीं, मंुबई की जमीर पर हुआ है। '
उन्होंने कांग्रेसा राष्ट्रपति को भी आड़े हाथ लेते हुए ट्वीट किया, ' आदरणीय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधीजी! क्या एक महिला होने के नाते महाराष्ट्र में आपकी सरकार के द्वारा मेरे साथ हो रहे बर्ताव पर आपको तकलीफ नहीं हुई? क्या आप अपनी पार्टी से अनुरोध नहीं कर सकते कि वह संविधान के सिद्धांतों को बनाए रखें, जो हमें डा। अम्बेडकर ने दिए थे? आप पश्चिम में पली-बढ़ी हैं। भारत में रहता है। आप महिलाओं के संघर्ष से अवगत होंगे। आपकी चुप्पी और अनदेखी को इतिहास जज करेगा। '
सवाल यह भी कि फिल्म जगत के बाकी लोग चुप्पी क्यों साधे हुए हैं? क्या वे मानकर चल रहे हैं कि जल में रहकर मगरमच्छ से बैर मोल लेना खतरे से खाली नहीं है? यदि वे ऐसी सोचकर सावधानी बरत रहे हैं, तो यह उनकी समझदारी नहीं है, नासमझी ही कही जाएगी। जबकि 'मणिकर्णिका' की ललकार से सरकार हिल गई है। वह अब अपना स्टैंड बदल रहा है कि इस मामले से उसका कोई लेना-देना नहीं है।
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