अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस पर विशेष:
02 अक्टूबर अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस पर संयुक्त राष्ट्र संध के महासचिव बान की मून ने महात्मा गांधी को श्रद्वांजलि देते हुए कहा है कि वैश्विक उथल-पुथल और संक्रमण के मौजूदा दौर में शांति, सौहार्द्र और भाईचारे का गांधीजी का संदेश और भी। प्रासंगिक हो गया है
श्री मून ने 2012 की शुरूआत में अपने दौरे के दौरान राजधाट पर गए थे। उन्होंने महात्मा गांधी की समाधि को याद करते हुए कहा कि महात्मा गांधी की दूर दृष्टि और उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि एक व्यक्ति कैसे पूरी दुनिया को बदल सकता है? उन्होंने कहा कि ईश्र्या भाव दूर करने की अपेक्षा हथियार उठाना आसान है। क्षमा के बजाय दूसरों में गलतियां निकालना आसान है।
दुर्भाग्य यह है कि गांधी के देश भारत में जहां देखो, वहां हिंसा का बोलबाला है। भारत सीमापार की हिंसक गतिविधियों से हलाकान ही है, आंतरिक हिंसात्मक गतिविधि, नक्सलवादियों के खूनखराबे और दंगा-फसाद से परेशान है। कहीं माब लिंचिंग से बेकसूरों की जान ली जा रही है, तो कहीं जरा-जरा सी बात पर तलवारें निकाली जा रही है।
बलात्कार और उसके बाद होनेवाले क्रतुम हत्याओं का दौर थम नहीं रहा है। ताजा उदाहरण उप्र के हाथरस का है, जहां 19 वर्षीय निर्दोष दलित लड़की का न केवल बलात्संग किया गया, अपितु उसकी गरदन, रीढ़ की हड्डी व जीभ पर इतने चोटें पहुंचचाई गई कि उसके 16 दिन बाद सफदरजंज अस्पताल में मौत हो गई।
ऐसे ही हिंसात्मक उदाहरणों से देश पटा पड़ा है। हिंसात्मक घटनाएं रोज की बात है। कहीं पड़ोसी-पड़ोसी का दुश्मन बना हुआ है, कहीं भाई-भाई, बाप-बेटा, चाचा-भतीजा, मामा-भांजा में हिंसात्मक झड़पें हो रहे हैं। लोग बात-बात पर आपा खोकर मारकाट में उतारू हो जाते हैं। गालीगलौच करते हैं कानून अपने हाथ में ले लेते हैं। यहां डांगा भड़कना आम बात है। लोग मंदिर-मस्जिद के नाम पर लड़ते हुए हैं।
और तो और, दानव के मंदिर तक इससे अछूते नहीं हैं। माइक तोड़ेफोड़े जाते हैं, अघ्यक्ष की आसंदी पर जाकर छीनाझपटी की जाती है। कागज फाड़े जाते हैं और चीख-चीखकर हिंसात्मक चर्चाएँ की जाती हैं, ताकि विपक्षी डर-सहम जाएँ।
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