अब तो रोते भी आंसु छुपाकर,
बनावटी हंसी हंस कर,
शिकायते बहुत है आपसे
टाल देते है ये सोचकर,
कही आप नाराज हो जाओ हमसे
उजाले में हंसते हैं
अंधेरों में रोते है
गमों की माला में
हंसी के मोती पिरोते है
कहने को तो यहां मेले है
पर फिर भी हम यहां अकेले है
ओरो के लिए महफिल की शान है
पर हम अपनी ही महफिल में गुमनाम है
मर तो कबके गए है
अब तो जिंदा लाश है
इस भीड़ में किसी और की नहीं
बस हमे खुद की तलाश है।